ट्राइकोडर्मा:(Trichderma Fungicide) खेती के लिए वरदान या भ्रम? जानिए सच्चाई और वैज्ञानिक उपयोग
ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) खेती के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली जैविक एजेंट है जो रोग प्रतिरोध, पोषण उपलब्धता और संपूर्ण फसल सुरक्षा में मदद करता है। इसकी विशेषताएँ इसे एक बायोकंट्रोल एजेंट, बायोस्टिमुलेंट और संभावित प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर बनाती हैं।
ट्रायकोड (Trichderma Fungicide) र्मा एक लाभदायक फफूंद है जो पौधों की जड़ों में सक्रिय होकर हानिकारक रोगजनकों जैसे फफूंद, बैक्टीरिया और निमेटोड से सुरक्षा करता है। यह मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है, पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और जैविक खेती में एक प्रभावी बायोकंट्रोल एजेंट के रूप में उपयोग होता है।

ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) खेती में जैव सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण साथी है।
जब कोई कहता है कि “ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) खेती के लिए वरदान है”, तो यह बात पूरी ट्राइकोडर्मा प्र (Trichderma Fungicide) जाति के लिए सही नहीं मानी जा सकती। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लें — जैसे हम कहते हैं कि उसैन बोल्ट 45 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरी मानव जाति वैसी ही तेज दौड़ सकती है। उसी तरह, खेती में ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) के फायदे केवल कुछ खास स्ट्रेन पर आधारित हैं।
What is a Trichderma Fungicide :- ट्राइकोडर्मा क्या है?
ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) एक फफूंद की प्रजाति (Genus) है, जिसके अंतर्गत कई प्रकार के स्ट्रेन (Strain) पाए जाते हैं। लेकिन खेती में जिन स्ट्रेनों का अधिकतम उपयोग होता है, वे हैं:
Trichoderma harzianum T2
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, आज भी दुनिया में ट्राइकोडर्मा के 99% उपयोग इन्हीं दो स्ट्रेन पर केंद्रित हैं।
ट्राइकोडर्मा (Trichderma Fungicide) हर जगह मौजूद क्यों होता है?
ट्राइकोडर्मा बहुत तेज़ी से फैलने वाला और प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने वाला सूक्ष्मजीव है। यह दलदल, रेगिस्तान, पहाड़, मिट्टी, हवा, पेड़ की जड़ों और यहां तक कि आपके घर के आसपास के कचरे में भी पाया जाता है। फिर भी हमें इसे खेत में अलग से क्यों डालना पड़ता है?
कारण:
1). खेती में हमें सिर्फ निश्चित स्ट्रेन की आवश्यकता होती है।
2). प्राकृतिक संतुलन के कारण इन उपयोगी स्ट्रेन की संख्या समय के साथ घटती जाती है।
3). रासायनिक उर्वरक, दवाइयाँ और अधिक जुताई इनकी मात्रा को कम कर देती है।
इसलिए चाहे आप जैविक खेती करें या रासायनिक, ट्राइकोडर्मा के इन स्ट्रेनों को बार-बार खेत में डालना जरूरी होता है।
ट्राइकोडर्मा कैसे करता है पौधों की रक्षा?
ट्राइकोडर्मा पौधों को रोगों, वायरस, हानिकारक फफूंद और निमेटोड से बचाने के लिए 5 प्रमुख तरीकों से काम करता है:
1. न्यूट्रिएंट कंपटीशन (poshak तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा)
ट्राइकोडर्मा मुख्य रूप से मिट्टी में मौजूद आयरन (Fe) और कार्बन के लिए प्रतिस्पर्धा करता है। जब ये तत्व हानिकारक सूक्ष्मजीवों को कम मात्रा में मिलते हैं, तो उनकी संख्या घट जाती है।
2. एंटीबायोसिस
ट्राइकोडर्मा ऐसे जैव-रसायन बनाता है जो दूसरे हानिकारक फफूंद की वृद्धि को रोकते हैं, जैसे:
हार्जियानिक एसिड
ट्राइकोलन
ग्लियोवेरिन
हेप्टेलडिक एसि
Mycoparacetism (दूसरे फफूंद को खा जाना)
Mycoparasitism (मायकोपैरासाइटिज़्म) एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें एक फफूंद (fungus) दूसरे हानिकारक फफूंद पर हमला करता है, उसे मारता है या उससे पोषण लेकर उसे नष्ट करता है।
जब ट्रायकोडर्मा जैसे लाभकारी फफूंद किसी हानिकारक फफूंद (जैसे फ्यूज़ेरियम, पीथियम आदि) के संपर्क में आता है, तो वह:
पहले उसे पहचानता है,
फिर उसके चारों ओर अपनी संरचना लपेटता है,
और एंजाइम छोड़कर उसे घोलकर खुद खा जाता है।
यह तरीका हानिकारक रोगों को प्राकृतिक रूप से रोकने में मदद करता है।
रासायनिक फफूंदनाशकों की जरूरत कम हो जाती है।
फसल की जड़ों को सुरक्षा प्रदान करता है।
मिट्टी को स्वस्थ और जैविक बनाए रखता है।
Induced Resistance (इंड्यूस्ड रेजिस्टेंस) यानी प्रतिरोध शक्ति को जागृत करना
Induced Resistance (इंड्यूस्ड रेजिस्टेंस) यानी प्रतिरोध शक्ति को जागृत करना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ट्रायकोडर्मा जैसे जैविक एजेंट पौधे की आंतरिक रोग-प्रतिरोधक प्रणाली को सक्रिय कर देते हैं, जिससे पौधा आने वाले रोगों, कीटों और तनावों से खुद को बचाने में सक्षम हो जाता है।
इंड्यूस्ड रेजिस्टेंस का मतलब है – पौधे की सोई हुई प्रतिरक्षा शक्ति को ट्रिगर करके उसे जागृत करना।
Trichderma Fungicide यह कैसे काम करता है?
Trichderma Fungicide ट्रायकोडर्मा जड़ों पर या पौधे की बाहरी सतह पर सक्रिय होता है।
यह पौधे को संकेत (signals) भेजता है कि “सावधान! खतरा है।”
पौधा इस संकेत को पाकर:
रक्षा रसायन (defensive chemicals) बनाता है।
सेल की दीवारें मजबूत करता है।
अपने शरीर में रोग रोधी एंजाइम्स जैसे Chitinase, Glucanase, Peroxidase आदि बनाना शुरू कर देता है।
ट्रायकोडर्मा द्वारा सक्रिय की गई प्रतिरोधक प्रणाली:
प्रमुख बदलाव लाभ
रक्षा एंजाइम्स का उत्पादन रोगजनक फफूंदों का विघटन
सेल वॉल मोटी होती है रोगजनक अंदर नहीं जा पाता
फाइटोएलेक्सिन रसायनों का निर्माण रोगों के खिलाफ रासायनिक ढाल
ऑक्सीडेटिव बर्स्ट रोगजनकों को तुरंत रोकना
Trichderma Fungicide फसलों पर प्रभाव:
फसल रोग ट्रायकोडर्मा से बचाव (%)
टमाटर जड़ गलन 70–90%
मिर्च झुलसा रोग 60–80%
गेहूं रतुआ 65–85%
धान ब्लास्ट 50–75%
क्यों जरूरी है Induced Resistance?
यह प्रक्रिया रासायनिक दवाओं के बिना पौधे को अंदर से मजबूत बनाती है।
बार-बार दवाइयाँ छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ती।
मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहते हैं।
निष्कर्ष:
इंड्यूस्ड रेजिस्टेंस यानी पौधे की प्राकृतिक सेना को तैयार करना। Trichderma Fungicide इस सेना का कर्नल बनकर उसे अलर्ट करता है और आने वाले हमलों से पहले ही रक्षा की पूरी तैयारी करवा देता है। जैविक खेती में यह अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावी तकनीक है।
Endophytic Action (बीज के अंदर सक्रिय होना)
एंडोफाइटिक क्रिया (Endophytic Action) का अर्थ है — किसी सूक्ष्मजीव (जैसे ट्रायकोडर्मा) का पौधे के अंदर, विशेष रूप से बीज के अंदर, बिना नुकसान पहुँचाए निवास करना और पौधे के साथ सहजीवी (symbiotic) संबंध बनाना। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
बीज के अंदर प्रवेश
ट्रायकोडर्मा फफूंद बीज के बाहरी स्तर (Seed Coat) से होते हुए भीतर प्रवेश करता है और वहां एक सुरक्षित स्थान बना लेता है।बिना हानि के सहजीवन
यह बीज को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता, बल्कि बीज के अंकुरण (Germination) के समय उसमें रोगों से लड़ने की क्षमता (Disease Resistance) बढ़ाता है।सक्रिय जैव रसायन उत्पादन
ट्रायकोडर्मा बीज के अंदर विशेष प्रकार के बायो-केमिकल्स उत्पन्न करता है, जैसे:फाइटोहोर्मोन (पौधे की वृद्धि को बढ़ाने वाले)
एंटीबायोटिक यौगिक (रोग पैदा करने वाले जीवों को मारने वाले)
रोगों से बचाव का कवच
अंकुर निकलने के समय बीज के आसपास का वातावरण रोगजनक फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस आदि से भरा होता है। एंडोफाइटिक ट्रायकोडर्मा इन रोगों को बीज और अंकुर से दूर रखता है।पूरे पौधे को मजबूत बनाता है
एक बार बीज के साथ ट्रायकोडर्मा स्थापित हो जाए तो यह पूरे पौधे में फैल सकता है, जिससे पौधा आगे चलकर:तनाव सहिष्णु (Stress Tolerant)
जलवायु अनुकूल (Climate Adaptive)
रोग प्रतिरोधी (Disease Resistant) बनता है।
एंडोफाइटिक ट्रायकोडर्मा केवल कुछ लकड़ी वाले पौधों (जैसे वृक्षों) में प्राकृतिक रूप से पाया गया है।
बीज के अंदर यह अपने विशेष एंजाइम्स के कारण ही प्रवेश कर पाता है।
वैज्ञानिक इस क्रिया को कृत्रिम रूप से कृषि फसलों में लाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि ट्रायकोडर्मा को हर फसल में बीज से ही स्थापित किया जा सके।
रोगों से पूर्व सुरक्षा
रासायनिक फफूंदनाशकों की जरूरत कम
अंकुरण और वृद्धि में तेजी
मिट्टी की जैविक गुणवत्ता में सुधार
ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कैसे करें? use fo trichderma
ट्रायकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशक (bio-fungicide) है जो मिट्टी में रोगजनकों (pathogens) को नियंत्रित करता है और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसका प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, जैसे बीज शोधन, रोपण शोधन, मृदा उपचार, ड्रेंचिंग, और स्प्रे के रूप में।
1. बीज शोधन (Seed Treatment)
कैसे करें:
ट्रायकोडर्मा पाउडर को पानी में घोलें (5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज)।
इस घोल में बीजों को भिगोकर सुखा लें।
तुरंत बोवनी करें।
लाभ:
बीज जनित रोगों से सुरक्षा
अंकुरण में तेजी
स्वस्थ पौधे की शुरुआत
2. रोपण शोधन (Seedling/Root Treatment)
कैसे करें:
ट्रायकोडर्मा पाउडर को पानी में मिलाकर (10 ग्राम/लीटर) घोल तैयार करें।
इसमें पौधों की जड़ों को 15–30 मिनट तक डुबोकर रखें।
इसके बाद रोपाई करें।
लाभ:
जड़ गलन, तना गलन जैसे रोगों से बचाव
बेहतर जड़ विकास
3. मृदा उपचार (Soil Treatment)
कैसे करें:
2 से 5 किलो ट्रायकोडर्मा पाउडर को गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ खेत में समान रूप से बिखेरें।
बुवाई से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें।
लाभ:
मिट्टी जनित रोगों का नियंत्रण
फायदेमंद सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि
4. ड्रेंचिंग (Drenching / जड़ क्षेत्र में डालना)
कैसे करें:
ट्रायकोडर्मा का 10 ग्राम पाउडर प्रति लीटर पानी में मिलाएं।
इस घोल को सीधे पौधों की जड़ों में डालें।
लाभ:
तत्काल प्रभाव, रोग नियंत्रण में तेजी
जड़ क्षेत्र में सुरक्षा कवच
5. फोलिएर स्प्रे (पत्तियों पर छिड़काव)
कैसे करें:
ट्रायकोडर्मा के घोल को पत्तियों पर छिड़कें (5-10 ग्राम प्रति लीटर)।
धूप से बचते हुए छिड़काव करें (सुबह या शाम)।
लाभ:
पत्तियों पर लगने वाले फफूंदजन्य रोगों से रक्षा
पौधे की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
महत्वपूर्ण सावधानियां
ट्रायकोडर्मा को रासायनिक फफूंदनाशक या कीटनाशकों के साथ एक साथ उपयोग न करें।
प्रयोग के 5–7 दिन के बाद ही रासायनिक दवा डालें (यदि आवश्यक हो)।
ट्रायकोडर्मा को जिंक सल्फेट, नीम का तेल, और कॉपर युक्त फफूंदनाशकों के साथ प्रयोग न करें।
इसे छायादार, ठंडी और सूखी जगह पर रखें।
किसके साथ मिलाकर प्रयोग करें?
डीएपी, यूरिया, एनपीके, एमओपी, एसएसपी, एसओपी के साथ सुरक्षित
सुडोमोनास, एजोटोबैक्टर, राइजोबियम, पीएसबी, एनपीके कंसोर्टिया के साथ उपयोग करें
मायकोरायजा के साथ प्रयोग में थोड़ी सावधानी, अंतराल से देना बेहतर
किन रसायनोसे ट्राइकोडर्मा को नुकसान होता है?What chemicals cause damage to trichoderma?
ट्रायकोडर्मा एक लाभदायक जैव-एजेंट (bio-control agent) है जो पौधों को फफूंदजनित रोगों से बचाने का कार्य करता है। परंतु कुछ रासायनिक कीटनाशक, फफूंदनाशक (Fungicide) और खरपतवारनाशक (Herbicide) ट्रायकोडर्मा की वृद्धि को रोक सकते हैं या पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं। इस कारण ट्रायकोडर्मा का असर खत्म हो जाता है और जैविक नियंत्रण की शक्ति कमजोर हो जाती है।
प्रयोग करने योग्य (Safe Chemicals):
नीचे दिए गए रसायनों का ट्रायकोडर्मा के साथ प्रयोग सुरक्षित है या इनसे बहुत कम हानि होती है:
रसायन का नाम ट्रायकोडर्मा पर असर
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL कोई असर नहीं (0%)
- एज़ोक्सीस्ट्रॉबिन कोई असर नहीं (0%)
- मैन्कोज़ेब 75% WP 1-8% रुकावट
- फेनवलेरेट 20% EC 1–30% रुकावट
- 24D सॉल्ट 80% WP सिर्फ 1% रुकावट
- इमेजाथैपिर 10% EC 0% (पूरी तरह सुरक्षित)
सीमित मात्रा में प्रयोग योग्य (सावधानी से):
इन रसायनों से मध्यम असर पड़ता है, इन्हें ट्रायकोडर्मा के साथ 5-7 दिन के अंतराल से प्रयोग करें:
रसायन का नाम असर की सीमा
- डेल्टा मैथ्रिन 2.8% EC 12–33%
- मोनोक्रोटोफॉस 36% SL 5–87%
- मेटालेक्सिल 8–30%
- पाइरथियोबैक सोडियम 10% EC 69%
- ग्लाइफोसेट 41% SL 37%
खतरनाक रसायन (बहुत नुकसानदायक):
इन रसायनों से ट्रायकोडर्मा की वृद्धि पूरी तरह रुक जाती है, इन्हें ट्रायकोडर्मा के साथ कभी न मिलाएं:
- रसायन का नाम ट्रायकोडर्मा पर असर
- एंडोसल्फान 35% EC 54–76%
- कार्बोसल्फान 25% EC 24–75%
- प्रोफेनोफॉस + सायपरमेथ्रिन 66–90%
- क्विज़ालोफ इथाइल 5% EC 94%
- क्लोरथालोनिल 72–90%
- कैप्टन 50% WP 60% तक
- हेक्साकोनाजोल 5% EC 94%
- प्रोपिकोनाजोल 250 EC 93%
- कार्बेन्डाज़िम 50% WP 92–95%
- प्रोपिनेप 25–92%
- एट्राजीन 50% WP (Herbicide) 94%
- पेंडामेथिलिन 20% EC (Herbicide) 88%
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP 60–76%
ट्रायकोडर्मा के साथ प्रयोग न करें:
- जिंक सल्फेट
- नीम का तेल (Neem Oil)
- कॉपर आधारित फफूंदनाशक
- क्लोरोपाइरीफॉस, फिप्रोनिल, और थायोमेथॉक्साम जैसे कुछ कीटनाशक
सुझाव:
यदि रसायन का उपयोग ज़रूरी हो, तो ट्रायकोडर्मा के उपयोग के 5–7 दिन बाद रासायन प्रयोग करें या उससे पहले।
जैविक खेती में रसायनों से दूरी बनाकर चलना सर्वोत्तम है।
ट्रायकोडर्मा का प्रयोग सुबह या शाम को करें, ताकि धूप से नुकसान न हो।
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ट्राइकोडर्मा के साथ कौन-कौन से उत्पाद मिल सकते हैं? What products can be found with Trichoderma?
ट्राइकोडर्मा के साथ कौन-कौन से उत्पाद मिल सकते हैं? – विस्तार में जानकारी
ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशक (bio-fungicide) है जिसे खेती में मिट्टी और पौधों को फफूंदजन्य रोगों से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक जीवित सूक्ष्मजीव (fungus) है, इसलिए इसे सही उत्पादों के साथ मिलाना बहुत जरूरी होता है। यदि आप ट्राइकोडर्मा के साथ गलत रसायन या जैविक घटक मिला देंगे, तो उसका प्रभाव पूरी तरह खत्म हो सकता है।
ट्राइकोडर्मा के साथ मिलने योग्य उत्पाद
1. उर्वरक (Fertilizers):
यूरिया (Urea)
डीएपी (DAP)
एमओपी (MOP)
एनपीके (NPK सभी ग्रेड्स)
एसएसपी (Single Super Phosphate)
एसओपी (Sulphate of Potash)
इन सभी उर्वरकों के साथ ट्राइकोडर्मा को मिला सकते हैं या एक साथ खेत में डाल सकते हैं।
2. जैविक उर्वरक / सूक्ष्म जीव आधारित उत्पाद:
राइजोबियम (Rhizobium)
अजोटोबैक्टर (Azotobacter)
फॉस्फेट सोल्यबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB)
जिंक सोल्यबिलाइजिंग बैक्टीरिया (ZSB)
एनपीके कंसोर्टिया
बेसिलस तुरिंजेनसिस (Bacillus thuringiensis)
वेस्ट डी-कंपोजर
यह सभी उत्पाद ट्राइकोडर्मा के साथ प्राकृतिक रूप से सहजीवी (symbiotic) संबंध रखते हैं, अतः मिलाना सुरक्षित है।
3. अन्य जैविक नियंत्रक (Bio-control agents):
पिसीलोमाइसिस
बेसिलस सब्टिलिस
स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स
मेटाराइजियम
ब्यूवेरिया बैसियाना
इन सूक्ष्मजीवों के साथ ट्राइकोडर्मा सह-अस्तित्व (co-existence) में रह सकता है।
4. मिट्टी संशोधन उत्पाद:
फॉर्म यार्ड मैन्योर (FYM / गोबर खाद)
वर्मी कम्पोस्ट
नाडेप खाद
बायो ऑर्गेनिक कार्बन
ट्राइकोडर्मा को इनके साथ मिलाकर ड्रेंचिंग या मिट्टी में मिलाना फायदेमंद रहता है।
ट्राइकोडर्मा के साथ सावधानीपूर्वक या सीमित प्रयोग:
मायकोरायजा:
कुछ शोधों में देखा गया है कि ट्राइकोडर्मा और मायकोरायजा एक-दूसरे की वृद्धि को रोकते हैं। इसलिए इनका उपयोग अलग-अलग समय पर करें:ट्राइकोडर्मा बीज शोधन या रोपाई के समय
मायकोरायजा 15-20 दिन बादबायोफर्टिलाइज़र लिक्विड फॉर्म में:
यदि तरल जैविक उर्वरक में कोई रसायन मिला हो तो पहले उसकी जांच करें।
ट्राइकोडर्मा के साथ न मिलाने योग्य
उत्पाद / रसायन का नाम | कारण |
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ट्राइकोडर्मा की वृद्धि को रोकता है | |
ट्राइकोडर्मा के स्पोर्स को मार सकता है | |
ट्राइकोडर्मा के लिए विषैले | |
90% से अधिक वृद्धि रोकते हैं |
प्रयोग के तरीके:
बीज शोधन – ट्राइकोडर्मा पाउडर या स्लरी से बीजों को लेपित करें।
जड़ डुबो विधि – पौध की जड़ों को ट्राइकोडर्मा घोल में डुबोकर लगाएं।
ड्रेंचिंग / ड्रिप द्वारा – ट्राइकोडर्मा को पानी में घोलकर ड्रेंचिंग करें।
मिट्टी में मिलाना – FYM/वर्मी कम्पोस्ट में ट्राइकोडर्मा मिलाकर खेत में डालें।
ट्राइकोडर्मा का उपयोग किन-किन बीमारियों में किया जा सकता है?
ट्राइकोडर्मा _ बहुरूपिया रक्षक
ट्राइकोडर्मा का उपयोग किन-किन बीमारियों में किया जा सकता है?Trichoderma can be used to control which plant diseases?)
🔬 ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशी (Biofungicide) है, जो पौधों की अनेक गंभीर और हानिकारक बीमारियों से रक्षा करता है। यह खासकर मिट्टी और जड़ों से जुड़ी बीमारियों के नियंत्रण में अत्यंत प्रभावी है।
🦠 ट्राइकोडर्मा किन बीमारियों में उपयोगी है?
🔢 | बीमारी का नाम | रोगजनक सूक्ष्मजीव | प्रभावित फसलें |
---|---|---|---|
1️⃣ | जड़ सड़न (Root Rot) | Rhizoctonia, Fusarium, Pythium | सब्जियां, गन्ना, फूल, धान |
2️⃣ | तना सड़न (Stem Rot) | Sclerotium rolfsii | सोयाबीन, मूंगफली, मक्का |
3️⃣ | विल्ट (Wilt) | Fusarium oxysporum | टमाटर, बैंगन, अरहर, कपास |
4️⃣ | ब्लास्ट रोग (Blast) | Magnaporthe oryzae | धान |
5️⃣ | रतुआ (Rust) | Puccinia spp. | गेहूं, चना |
6️⃣ | झुलसा रोग (Leaf Blight / Spot) | Alternaria, Cercospora, Helminthosporium | प्याज, लहसुन, मक्का |
7️⃣ | डैम्पिंग-ऑफ (Damping Off) | Pythium, Phytophthora | नर्सरी की पौध |
8️⃣ | क्लब रूट | Plasmodiophora brassicae | गोभी वर्ग की फसलें |
9️⃣ | सफ़ेद सड़न (White Rot) | Sclerotinia sclerotiorum | प्याज, सूरजमुखी |
🔟 | सड़ी हुई बीज समस्या (Seed Rot) | Fusarium spp. | सभी फसलें |
✅ प्रभाव कैसे करता है ट्राइकोडर्मा?
हानिकारक फफूंद को सीधे नष्ट करता है (मायकोपैरासिटिज्म)
उनके भोजन स्रोत छीन लेता है (न्यूट्रिएंट कंपटीशन)
रोगजनकों की वृद्धि रोकता है (एंटीबायोसिस)
पौधों की अंदरूनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है (इंड्यूस रेजिस्टेंस)
📌 विशेष जानकारी:
बीज शोधन, जड़ डिपिंग, ड्रेंचिंग, ड्रिप सिंचाई, और फोलियर स्प्रे द्वारा इसका उपयोग किया जा सकता है।
यह रसायनों से रहित सुरक्षित समाधान है और जैविक खेती में स्वीकृत है।